ग़ज़ल
दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं
तन्हाई में रो लेते हैं ।
दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं ।
दीवानों सा हाल हुआ है
हंस देते हैं, रो लेते हैं ।
जो भी लगता है अपना सा
साथ उसी के हो लेते हैं ।
'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है
आओ थोड़ा सो लेते हैं ।
दोस्त मोहम्मद
दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं
तन्हाई में रो लेते हैं ।
दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं ।
दीवानों सा हाल हुआ है
हंस देते हैं, रो लेते हैं ।
जो भी लगता है अपना सा
साथ उसी के हो लेते हैं ।
'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है
आओ थोड़ा सो लेते हैं ।
दोस्त मोहम्मद
जुलाई 2008
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