Thursday, January 15, 2009

2) दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं

ग़ज़ल

दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं
तन्हाई में रो लेते हैं ।

दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं ।

दीवानों सा हाल हुआ है
हंस देते हैं, रो लेते हैं ।

जो भी लगता है अपना सा
साथ उसी के हो लेते हैं ।

'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है
आओ थोड़ा सो लेते हैं ।

दोस्त मोहम्मद
जुलाई 2008

No comments:

Post a Comment