ग़ज़ल
हमको जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद
यूं तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था वही आया बहुत देर के बाद
दिल की बात उससे कहें, कैसे कहें, या ना कहें
मस-अला हमने यह सुलझाया बहुत देर के बाद
दिल तो क्या चीज़ है हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबां, आपने फ़रमाया बहुत देर के बाद
बात अश-आर के पर्दे में भी हो सकती है
भेद यह ’दोस्त’ ने अब पाया बहुत देर के बाद
जुलाई 2008
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