ग़ज़ल
.
क्यूं इसे हसरतो मातम में गुज़ारा जाये
ज़िन्दगी को नये ख़्वाबों से संवारा जाये
.
रात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
आओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाये
.
तू मेरे साथ चले, मैं भी तेरे साथ चलूं
जिस तरह साथ ही दरया के किनारा जाये
.
इक तमन्ना है यही, जब से मिला है कोई
ज़िन्दगी फिर तुझे इक बार गुज़ारा जाये
.
तुझसे ऐ दोस्त नये रंगे सुख़न मुझको मिले
किस तरह यह तेरा एहसान उतारा जाये
.
आओ ऐ ’दोस्त’ नये दौर का आग़ाज़ करें
अब ना माज़ी का कोई ज़ख़्म उभारा जाये
ख़ूब सूरत ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया साहब
ReplyDeleteये अशआर खास
तौर से पसन्द आये
. यूँ तो सारी ग़ज़ल ही बहुत ख़ूब है
रात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
आओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाये
.
तू मेरे साथ चले, मैं भी तेरे साथ चलूं
जिस तरह साथ ही दरया के किनारा जाये
.
इक तमन्ना है यही, जब से मिला है कोई
ज़िन्दगी फिर तुझे इक बार गुज़ारा जाये
.
रात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
ReplyDeleteआओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाये
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
"tujh se ae dost naye rang-e-sukhan mujhko mile
ReplyDeletekis tarah ye teraa ehsaan utaara jaae...."
huzoor ...
bahut hu khoobsurat ghzal kahi hai aapne....
kaash....
maiN iss qaabil hotaa
k iss nayaab sher par
koi vaajib tabseraa kar paata . . .
lajawaab . . .
waah-wa
mubarakbaad
---MUFLIS---
दोस्त साहब ये कमाल का शेर है कि ,
ReplyDeleteरात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
आओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाये !
ज़िन्दगी को नये ख़्वाबों से संवारा जाये !!
यही तो ज़िन्दगी के सारे सबक का निचोड है !
आपकी ग़ज़लें पढ़ीं। बहुत कम पढ़ने को मिलती हैं ऐसी मुकम्मल ग़ज़लें।
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, बस यही समझ नहीं आया कि जनवरी के बाद क्या नाराज़गी हो गई जो आपने कोई पोस्ट ही नहीं लगाई।
इंतज़ार रहेगा।
तिलक राज कपूर
सभी दोस्तों का बेहद शुक्र्गुज़ार हूं और साथ ही माज़रत भी चाहता हूं कि इतने अर्से बाद उनकी राय का जवाब दे रहा हूं. मैं खुद भी अपने ब्लाग पर काफ़ी मुद्द्त बाद आया हूं. जल्द ही चंद नई गज़लें आपके मुलाहज़े के लिए पेश करूंगा.
ReplyDeleteदोस्त मोहम्म्द