Thursday, January 22, 2009

5) होसला मरने का ना जीने का यारा ज़िन्दगी

ग़ज़ल
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हौसला मरने का, ना जीने का यारा ज़िन्दगी
और कितने इम्तिहाँ बाक़ी है ? बतला ज़िन्दगी ।
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जानता हूँ तेरे दामन से मिलेगा क्या मुझे
और दे दे कर खिलोने यूँ ना बहला ज़िन्दगी ।
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ख्वाब सारे ख्वाब ही हैं, ये भी ना रह पाएंगे
टूटने से इनका है रिश्ता पुराना ज़िन्दगी ।
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अब थकन से चूर इतने हो चुके हैं जिस्म ओ जां
नींद आजाये तो हमको मत जगाना ज़िन्दगी ।
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उम्र भर जिसने हकीक़त बनके बहकाया हमें
आख़िरश, ऐ 'दोस्त', वह निकली फ़साना ज़िन्दगी ।
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दोस्त मोहम्मद
जुलाई 2008

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