Thursday, January 15, 2009

1) हमको जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद

ग़ज़ल

हमको जीने का हुनर आया बहुत देर की बाद
ज़िन्दगी हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद ।

यूँ तो मिलने को मिले लोग हजारों लेकिन
जिसको मिलना था वही आया बहुत देर के बाद ।

दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें ?
मसअला हमने यह सुलझाया बहुत देर के बाद ।

दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबां आपने फरमाया बहुत देर के बाद ।

बात अश-आर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद ।

दोस्त मोहम्मद
जुलाई 2008

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