ग़ज़ल
हमको जीने का हुनर आया बहुत देर की बाद
ज़िन्दगी हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद ।
यूँ तो मिलने को मिले लोग हजारों लेकिन
जिसको मिलना था वही आया बहुत देर के बाद ।
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें ?
मसअला हमने यह सुलझाया बहुत देर के बाद ।
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबां आपने फरमाया बहुत देर के बाद ।
बात अश-आर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद ।
दोस्त मोहम्मद
हमको जीने का हुनर आया बहुत देर की बाद
ज़िन्दगी हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद ।
यूँ तो मिलने को मिले लोग हजारों लेकिन
जिसको मिलना था वही आया बहुत देर के बाद ।
दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें ?
मसअला हमने यह सुलझाया बहुत देर के बाद ।
दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबां आपने फरमाया बहुत देर के बाद ।
बात अश-आर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद ।
दोस्त मोहम्मद
जुलाई 2008
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